By पं. सुव्रत शर्मा
शास्त्रों के अनुसार जानें कृष्ण जन्माष्टमी की सही तारीख, पूजा का शुभ मुहूर्त, चंद्रोदय का समय और व्रत के सभी महत्वपूर्ण नियम।
जब आधी रात का अंधकार घना होता है, और एक शंख की ध्वनि से पूरा ब्रह्मांड गूंज उठता है, तब धरा पर अवतरित होते हैं योगेश्वर श्रीकृष्ण। उनका जन्मोत्सव केवल एक पर्व नहीं, बल्कि अंधकार पर प्रकाश की, अधर्म पर धर्म की और निराशा पर आशा की विजय का जीवंत उद्घोष है। हर वर्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को यह महापर्व मनाया जाता है, लेकिन पंचांग की सूक्ष्म गणनाओं के कारण कई बार तिथि को लेकर संशय उत्पन्न हो जाता है। इस वर्ष भी भगवान श्रीकृष्ण के 5252वें जन्मोत्सव पर यह प्रश्न उठ रहा है कि जन्माष्टमी का व्रत 15 अगस्त को रखा जाए या 16 अगस्त को? आइए, शास्त्रों की दृष्टि से इस दुविधा का समाधान करें।
शास्त्रों के अनुसार, जब अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र का संयोग एक ही दिन न हो, तो व्रत और पूजन उदयातिथि के अनुसार करना श्रेष्ठ माना जाता है। चूंकि 16 अगस्त को सूर्योदय के समय अष्टमी तिथि विद्यमान रहेगी, इसलिए गृहस्थ जीवन वालों के लिए जन्माष्टमी का पर्व 16 अगस्त 2025, शनिवार को मनाना शास्त्रसम्मत और मंगलकारी होगा।
जन्माष्टमी का व्रत केवल निराहार रहना नहीं, बल्कि इंद्रियों पर संयम और मन की शुद्धि का पर्व है। इस दिन कुछ विशेष नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है:
विवरण | तिथि और समय |
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अष्टमी तिथि प्रारंभ | 15 अगस्त 2025, रात्रि 11:49 बजे |
अष्टमी तिथि समाप्त | 16 अगस्त 2025, रात्रि 09:34 बजे |
जन्माष्टमी की सही तारीख | 16 अगस्त 2025, शनिवार (उदयातिथि के अनुसार) |
रोहिणी नक्षत्र | 17 अगस्त को आरंभ होगा |
चंद्रोदय (16 अगस्त) | रात्रि 10:46 बजे |
व्रत का पारण | 17 अगस्त, सूर्योदय के बाद |
श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव हमें यह सिखाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी विषम क्यों न हों, ईश्वर का अवतरण धर्म की स्थापना और भक्तों के उद्धार के लिए अवश्य होता है। यह पर्व केवल उपवास और पूजा तक सीमित नहीं है, यह अपने भीतर की बुराइयों को त्यागकर प्रेम, करुणा और निस्वार्थ कर्म के मार्ग पर चलने का संकल्प लेने का दिन है। इस पावन अवसर पर पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ कान्हा का जन्मोत्सव मनाएं और उनके दिव्य आशीर्वाद से अपने जीवन को कृतार्थ करें।
अनुभव: 27
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