By पं. सुव्रत शर्मा
100 वर्षों बाद पितृ पक्ष की शुरुआत और समापन ग्रहणों से होगा, जानें तिथियां और नियम
पितृ पक्ष हिन्दू धर्म का एक अत्यंत पवित्र काल है जिसमें लोग अपने पितरों को तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध के माध्यम से स्मरण और सम्मान अर्पित करते हैं। मान्यता है कि इस अवधि में किए गए कर्म पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करते हैं और बदले में परिवार को समृद्धि और सुख-शांति का आशीर्वाद मिलता है।
आरंभ: 7 सितम्बर 2025, रविवार
समापन: 21 सितम्बर 2025, रविवार
इस पूरे पखवाड़े में लोग अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध, पिंडदान और दान करते हैं।
साल 2025 का पितृ पक्ष विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह पूरे 100 वर्षों बाद एक ऐसी खगोलीय घटना के साथ होगा जिसमें इसकी शुरुआत और समापन दोनों ग्रहणों से जुड़ेंगे।
जब भी भारत में ग्रहण प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता है, सूतक काल मान्य होता है। सूतक ग्रहण से 9 घंटे पूर्व शुरू होकर ग्रहण समाप्त होने तक चलता है।
करने योग्य कार्य | वर्जित कार्य |
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श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण | अशुभ कार्य या मांगलिक कार्य |
ब्राह्मण भोजन और दान | मंदिर प्रवेश (ग्रहण के समय) |
पितरों के नाम से अन्न-जल अर्पण | भोजन पकाना और खाना (ग्रहण काल में) |
धार्मिक ग्रंथों का पाठ | नए कार्यों की शुरुआत |
यह पितृ पक्ष केवल श्राद्ध का ही समय नहीं है बल्कि यह आकाशीय घटनाओं का भी साक्षी बनेगा। सौ वर्षों बाद ऐसा संयोग बना है जब इसकी शुरुआत चंद्र ग्रहण और समापन सूर्य ग्रहण से होगा। जो लोग इस अवधि में श्रद्धा और नियमों के साथ अपने पितरों का स्मरण करेंगे, उन्हें पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होगा और जीवन में समृद्धि आएगी।
पितृ पक्ष 2025 की शुरुआत 7 सितम्बर को होगी और इसका समापन 21 सितम्बर को होगा।
चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई देगा लेकिन सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा।
सूतक ग्रहण से 9 घंटे पहले शुरू होकर ग्रहण समाप्त होने तक चलता है।
नहीं, ग्रहण काल में श्राद्ध, पिंडदान या धार्मिक अनुष्ठान नहीं किए जाते।
ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान कर दान, तर्पण और पितरों के लिए अर्पण करना शुभ माना जाता है।
अनुभव: 27
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