By पं. संजीव शर्मा
माँ के दस अस्त्र-शस्त्रों, मुद्रा और सिंहासन का गूढ़ संदेश
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थ:
हे देवी, जो समस्त जीवों में बुद्धि रूप में स्थित हैं, उन्हें बारम्बार प्रणाम है!
यह श्लोक ‘देवी महात्म्यम्’ (दुर्गा सप्तशती) का सबसे मूल भाव समेटे हुए है माँ दुर्गा, जो केवल स्थापित प्रतिमा नहीं बल्कि हर कण, हर चेतना, हर जीव में विद्यमान शक्ति, करुणा और बुद्धि हैं। यह केवल किसी देवी की आरती नहीं बल्कि जीव-जगत में व्याप्त दिव्य चेतना का स्वीकार है।
“या देवी सर्वभूतेषु…” की प्रतिध्वनि हर मंदिर, हर माता के पर्व में सुनाई देती है। माँ दुर्गा शक्ति, साहस, करुणा, विवेक और चेतना का पूर्ण रूप। वही सृष्टि की रचयिता, पालक और विपत्तियों का अंत करने वाली हैं। माँ का दस भुजाओं वाला स्वरूप भारतीय सभ्यता में प्रकृति, चेतना और धर्म का सामंजस्य दर्शाता है।
दस भुजाएँ माँ के दिव्य-सामर्थ्य का प्रतीक हैं। यह बहुआयामी दृष्टिकोण, समग्रता और संपूर्ण दिशा-बोध का संकेत हैं। हर भुजा एक अस्त्र-शस्त्र लेकर विशेष भाव और शक्ति दर्शाती है यानि माँ हर दिशा, हर चुनौती, हर स्थिति के लिए तैयार हैं।
हथियार | प्रतीक / अर्थ | गूढ़ संदेश |
---|---|---|
त्रिशूल | तीनों गुणों पर नियंत्रण - सत्व, रज, तम | संतुलन, सद्गुणों से जीवन का संयोजन |
खड्ग (तलवार) | विवेक, बुध्दि की तीक्ष्णता, अज्ञान पर प्रहार | संशय/मोह दूर कर आत्मज्ञान की ओर |
शंख | ॐ की नाद, सत्य की उद्घोषणा | आध्यात्मिक जागरण, ह्रदय की पवित्रता |
चक्र | काल-चक्र, कर्म का चक्र, समय की गति | सतर्कता, कर्म का आदर, ब्रह्मांडीय व्यवस्था |
धनुष | संकल्पशक्ति, एकाग्रता, लक्ष्य की ओर ध्यान | साधना में अटूट लगन, धर्म की रक्षा |
बाण | निर्णायकता, सीधा संकल्प | बाधाओं का निवारण, धर्म का स्थापन |
पद्म (कमल) | निर्मलता, आत्मिक विकास, लौकिकता पर विजय | परस्थितियों में स्वयं को निर्मल बनाए रखना |
गदा | बल, अहंकार का दमन, ज्ञान की दृढ़ता | अहंकार-अज्ञान नष्ट कर विनम्रता का भाव |
भाला | सत्य की पैठ, मोह, अहंकार का विनाश | सत्य की स्पष्टता, मोह-माया के पार जाने की शक्ति |
ढाल | सुरक्षा, संरक्षण, नकारात्मकता से रक्षा | श्रद्धा, नैतिकता से हर संकट से रक्षण |
माँ के दस भुजाएँ योद्धा और माँ दोनों का एक साथ रूपांतरण हैं। कभी सामना हो तो शस्त्र उठाती हैं; पोषण की जरूरत हो तो अहिंस्रता, विनम्रता, शांति का भाव देती हैं। उनका हर हथियार, हर मुद्रा, जीवन के हर संकट का समाधान है।
गुण | माँ के अस्त्र में भाव | व्यवहारिक शिक्षा |
---|---|---|
बहुआयामी | दस भुजाएँ | हर भूमिका के लिए तत्पर |
संतुलन | शांति, अस्त्र, मुद्रा | संघर्ष-करुणा समभाव |
जागरूकता | चक्र, धनुष, बाण | विवेकपूर्ण कर्म |
दृढ़ता | गदा, ढाल | बाधाओं से टकराना और विजय |
निर्मलता | पद्म, शंख | कठिनाई में भी पवित्रता |
माँ दुर्गा श्रद्धालु के लिए केवल रक्षक नहीं उत्थान, उर्ध्वगामी ऊर्जा, आत्म-साक्षात्कार का द्योतक हैं। माँ के दस स्वरूप हमें हर स्थितियों से जूझना, मोहरूपी भ्रम तोड़ना, विनम्रता सीखना और समाज-व्यक्तित्व का नैतिक संरक्षण करना सिखाते हैं। आज भी कहीं स्त्री, कहीं पुरुष, कहीं बालक हर जगह, हर परिस्थिति के अनुसार माँ के किसी ना किसी रूप की जरूरत पड़ती है; यही उनका ब्रह्मांडीय, सार्वभौमिक स्वरूप है।
दस भुजाओं वाली माँ केवल चित्र या मूर्ति नहीं बल्कि हर मन, हर कर्म, हर युद्ध और हर विजय का आंतरिक रहस्य हैं। माँ के हाथों के हर अस्त्र-शस्त्र से सन्देश है
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
"माँ दुर्गा, जो हर जीव में बुद्धि, करुणा और शक्ति का रूप लेती हैं उन्हें बार-बार प्रणाम। जय माँ दुर्गा!"
दस हाथ माँ की सर्वविधि शक्ति, बहुआयामी संरक्षण, पूर्णता और हर दिशा से सुरक्षा का प्रतीक हैं।
हर हथियार एक विशिष्ट गुण, मनोवृत्ति और साधक की जीवन यात्रा का अहम संदेश देता है जैसे तलवार विवेक की, कमल निर्मलता की, त्रिशूल संतुलन की।
सिंह विकारों, भय और दुर्बलता पर नियंत्रण व साहस की विजय का प्रतीक हैं; माँ शक्ति-संपन्न और निर्भीक हैं।
लाल साड़ी शक्ति, ऊर्जा, रचनात्मकता का और आभूषण समृद्धि, सौंदर्य, अभिलाषा की पूर्ति का प्रतीक है।
हर परिस्थिति में साहस, विनम्रता, विवेक, संतुलन व विविध जीवन-कौशलों को जोड़ना यही माँ का महान संदेश है।
अनुभव: 15
इनसे पूछें: पारिवारिक मामले, आध्यात्मिकता और कर्म
इनके क्लाइंट: दि., उ.प्र., म.हा.
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