By पं. संजीव शर्मा
तृतीय भाव में राहु के शुभ-अशुभ प्रभाव, योग, संबंध और उपाय

वैदिक ज्योतिष में तृतीय भाव को साहस, पराक्रम, संचार, भाई-बहन, पड़ोसी, छोटी यात्राओं, प्रारंभिक शिक्षा और रचनात्मक अभिव्यक्ति का भाव माना जाता है। जब राहु इस भाव में स्थापित होता है, तो यह व्यक्ति के व्यक्तित्व में असाधारण आत्मविश्वास, जोखिम लेने की क्षमता और संवाद कौशल का विकास करता है। हालांकि, इसके प्रभाव परिस्थितियों और अन्य ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करते हुए शुभ और अशुभ दोनों हो सकते हैं।
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| राशि | प्रभाव |
|---|---|
| वृषभ | उच्च स्थिति में राहु अपार आर्थिक लाभ, गुप्त आय के स्रोत और विदेशी अवसर देता है। |
| वृश्चिक | नीच स्थिति में राहु गुप्त विद्या, रहस्यमय कार्य और गोपनीय सेवाओं में सफलता देता है, परंतु मानसिक स्थिरता में कमी कर सकता है। |
| योग | विवरण |
|---|---|
| अंगारक योग | राहु और मंगल की युति से बनने वाला यह योग भाई-बहनों के साथ तनाव और क्रोधपूर्ण स्वभाव ला सकता है। |
| वासुकी कालसर्प योग | राहु तृतीय भाव में और केतु नवम भाव में हो तो यह योग बनता है, जो संबंधों में उतार-चढ़ाव और स्वास्थ्य समस्याएं ला सकता है। |
प्र1: क्या तृतीय भाव का राहु करियर में सफलता देता है?
हाँ, विशेषकर संचार, मीडिया, लेखन और रचनात्मक क्षेत्रों में।
प्र2: क्या राहु भाई-बहनों के रिश्तों को प्रभावित करता है?
हाँ, यह सहयोग भी दे सकता है और प्रतिस्पर्धा भी बढ़ा सकता है।
प्र3: क्या तृतीय भाव का राहु साहस बढ़ाता है?
हाँ, यह व्यक्ति को जोखिम लेने और बड़े निर्णय लेने के लिए प्रेरित करता है।
प्र4: अंगारक योग क्या है?
राहु और मंगल की युति से बनने वाला योग, जो क्रोध और संबंधों में तनाव ला सकता है।
प्र5: राहु की अशुभता कैसे कम करें?
राहु यंत्र की स्थापना, सतनाजा दान और गोमेद रत्न धारण से इसके प्रभाव को संतुलित किया जा सकता है।
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