By पं. नीलेश शर्मा
जानिए शेषनाग के जन्म, कठिन तपस्या, और उनकी अनंत महिमा की उत्प्रेरक कथा, जो अनादि संतुलन का प्रतीक है।
भारतीय वेदों और पुराणों में शेषनाग को “अनंत” और “आदिशेष” के नाम से भी जाना जाता है। वे न केवल नागों के स्वामी हैं, बल्कि ब्रह्मांड के संतुलन, पृथ्वी के आधार और भगवान विष्णु की शय्या के रूप में भी उनकी महिमा अद्वितीय है। शेषनाग की कथा रहस्य, तपस्या और दिव्यता से भरी है, जो हर पाठक को गहराई से छू जाती है।
पहलू | विवरण |
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उत्पत्ति | कद्रू और कश्यप के सबसे ज्येष्ठ पुत्र |
तपस्या | गंधमादन पर्वत पर कठोर तप, ब्रह्मा जी से वरदान |
पृथ्वी का आधार | पृथ्वी को अपने फन पर धारण कर संतुलन बनाए रखना |
विष्णु की शय्या | क्षीरसागर में भगवान विष्णु के विश्राम का आसन |
अवतार | लक्ष्मण, बलराम, पतंजलि, रामानुजाचार्य आदि |
प्रतीक | अनंतता, संतुलन, धैर्य, भक्ति, धर्मनिष्ठा |
शेषनाग की कथा केवल पौराणिक नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में प्रासंगिक है। वे न केवल ब्रह्मांड के संतुलन के प्रतीक हैं, बल्कि भक्ति, सेवा, धैर्य और अनंतता का भी संदेश देते हैं।
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