भारतीय महाभारत और पुराणों में तक्षक नाग की कथा रहस्य, प्रतिशोध, करुणा और धर्म के गहरे संदेश से भरी है। यह कथा न केवल नागों के इतिहास को उजागर करती है, बल्कि क्षमा, संतुलन और जीवन के गूढ़ अर्थ को भी सामने लाती है। तक्षक नाग, राजा परीक्षित, जनमेजय और आस्तिक मुनि की यह गाथा आज भी हर पाठक के लिए प्रेरणा और सोच का विषय है।
तक्षक नाग और राजा परीक्षित - प्रतिशोध की शुरुआत
- राजा परीक्षित का शाप: महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के वंशज परीक्षित हस्तिनापुर के राजा बने। एक दिन शिकार के दौरान वे प्यासे होकर ऋषि शमीक के आश्रम पहुँचे। ऋषि ध्यान में लीन थे, परीक्षित को उत्तर न मिलने पर उन्होंने क्रोधवश मरे हुए साँप को ऋषि के गले में डाल दिया।
ऋषि के पुत्र श्रृंगी को जब यह अपमान ज्ञात हुआ, तो उन्होंने परीक्षित को शाप दिया कि सातवें दिन तक्षक नाग के डसने से उनकी मृत्यु होगी।
- तक्षक नाग का आगमन: शाप के अनुसार, सातवें दिन तक्षक नाग ने परीक्षित के महल में प्रवेश किया। परीक्षित ने स्वयं को बचाने के लिए अनेक उपाय किए, लेकिन तक्षक ने छल से प्रवेश कर उन्हें डस लिया। परीक्षित की मृत्यु के साथ ही कुरुवंश का अंत हो गया।
जनमेजय का नाग यज्ञ - प्रतिशोध की ज्वाला
- पुत्र का प्रतिशोध: परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने पिता की मृत्यु का बदला लेने का संकल्प लिया। उन्होंने विशाल नाग यज्ञ (सर्पसत्र) का आयोजन किया, जिसमें मंत्रबल से समस्त नागों को अग्नि में आहुति देने का प्रयास किया गया।
- तक्षक नाग का इंद्र की शरण में जाना: तक्षक नाग ने अपनी रक्षा के लिए इंद्र की शरण ली। इंद्र ने तक्षक को अपने सिंहासन के नीचे छुपा लिया। लेकिन यज्ञ की अग्नि इतनी प्रबल थी कि इंद्र सहित तक्षक भी खिंचकर यज्ञकुंड की ओर जाने लगे।
आस्तिक मुनि की करुणा - नागों की रक्षा
- आस्तिक मुनि का आगमन: आस्तिक मुनि, जो एक ब्राह्मण माता और नाग पिता के पुत्र थे, नागों के विनाश से व्यथित हुए। वे यज्ञ स्थल पर पहुँचे और जनमेजय से यज्ञ रोकने का अनुरोध किया।
आस्तिक की विद्वता, विनम्रता और तर्क से जनमेजय प्रभावित हुए। उन्होंने आस्तिक को वरदान देने का वचन दिया। आस्तिक ने नागों की रक्षा के लिए यज्ञ को रोकने का वर माँगा।
- नाग यज्ञ का समापन: जनमेजय ने आस्तिक के अनुरोध पर यज्ञ रोक दिया। तक्षक नाग और अन्य नागों की प्राण रक्षा हुई। तभी से नाग पंचमी का पर्व मनाया जाता है, जिसमें नागों की पूजा और अभयदान की परंपरा है।
कथा का गूढ़ संदेश
- क्षमा और संतुलन:
तक्षक नाग की कथा सिखाती है कि प्रतिशोध और क्रोध से केवल विनाश होता है, जबकि क्षमा, करुणा और संतुलन से जीवन में शांति आती है।
प्रकृति और मानव का संबंध:
नागों का विनाश रोकना प्रकृति और जीवों के प्रति करुणा और संतुलन का प्रतीक है।
- धर्म और विवेक:
आस्तिक मुनि की भूमिका यह दर्शाती है कि धर्म, विवेक और करुणा से ही समाज में संतुलन और शांति संभव है।